नवरात्रि , Navratri, Chaitra Navratri 2023, चैत्र नवरात्री 2023
नवरात्रि (Navratri) मूलतः एक संस्कृत शब्द है मतलब होता है नौ रातें | नवरात्रि हिन्दू धर्म के मुख्या त्योहारों में से एक है जिसे पूरे भारत में महान उत्साह के साथ मनाया जाता है।
नवरात्री के दौरान 9 रातों और 10 दिनों में देवी के 9 आराधना की जाती है | नवरात्री का पर्व एक वर्ष में 4 बार (माघ, चैत्र, आषाढ,अश्विन मास में ) आता है |
नवरात्री की 9 रातों में जिन 3 देवियों के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है वे हैं
- महालक्ष्मी
- सरस्वती
- महाकाली
- इनके नाम और स्थान क्रमशः इस प्रकार है
- नन्दा देवी योगमाया (विंध्यवासिनी शक्तिपीठ),
- रक्तदंतिका (सथूर),
- शाकम्भरी (सहारनपुर शक्तिपीठ),
- दुर्गा(काशी),
- भीमा (पिंजौर) और
- भ्रामरी (भ्रमराम्बा शक्तिपीठ)
Navratri (नवरात्रि) का महत्त्व
नवरात्रि उत्सव मुख्यतः माँ दुर्गा की आराधना का पर्व है | जब भी वसंत ऋतु तथा शरद ऋतु का प्रारम्भ होता है तो ऐसे समय में जलवायु और सूर्य के प्रभावों का एक महत्वपूर्ण संगम होता है | नवरात्री पर्व को माँ दुर्गा की भक्ति और परम-पिता परमात्मा की परम रचनात्मक शक्ति की पूजा का सबसे शुभ तथा अनोखा कालखंड माना जाता है | इस पर्व की तिथियों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के अनुसार होता है |
यह पूजा वैदिक युग से भी पहले से चली आ रही है | नवरात्रि में देवी के शक्तिपीठ और सिद्धपीठों पर भारी मेलों का आयोजन किया जाता है। हाँलाकि माता के जितने भी शक्तिपीठ हैं उन सबका महत्त्व अलग अलग है लेकिन माता का स्वरुप एक ही है | जम्मू कटरा के पास वैष्णो देवी के रूप में पूजी जातीं हैं कहीं पर चामुंडा का रूप धारण कर लेती हैं | बिलासपुर हिमाचल प्रदेश मे नैना देवी नाम से माता के मेले लगते हैं तो वहीं सहारनपुर में शाकुंभरी देवी के नाम से भक्तों को दर्शन देती हैं | ऐसा माना कि नवरात्री व्रत करने से माता प्रसन्न होती हैं हाँलाकि हिन्दू धर्म के धर्म ग्रंथो में व्रत करने का प्रावधान नहीं है |
Table of Contents
Navratri (नवरात्रि) के पहले तीन दिन
नवरात्री के पहले 3 दिन माँ दुर्गा की ऊर्जा और शक्ति की पूजा के लिए समर्पित किये गए हैं | माँ दुर्गा के अलग अलग स्वरूपों की आराधना के लिए अलग दिन निर्धारित किया गे यही | पहले दिन माँ दुर्गा के शैलपुत्री, दूसरे दिन ब्रम्ह्चारिणी और तीसरे दिन चंद्रघंटा स्वरुप की पूजा अर्चना की जाती है।
Navratri (नवरात्रि) के चौथे से छठे दिन
नवरात्रि के चौथे, पांचवें और छठे दिन लक्ष्मी- समृद्धि और शांति की देवी, की पूजा करने के लिए समर्पित है।
Navratri (नवरात्रि) का सातवां और आठवां दिन
सातवां दिन माँ सरस्वती की पूजा का है जो कला और ज्ञान की देवी हैं | आठवे दिन पर एक यज्ञ करने का विधान है जो माँ दुर्गा की विदाई के लिए किया जाता है |
Navratri (नवरात्रि) का नौवां दिन
यह नवरात्रि का अंतिम दिन है | इस दिन को महानवमी के नाम से भी जाना जाता है | इस दिन ऐसी 9 कन्याओं की पूजा की जाती है जो अभी तक यौवन की अवस्था तक नहीं पहुँची है। इन नौ कन्याओं को देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक मानकर उनका सम्मान और स्वागत करने के लिए उनके पैर धोये जाते हैं, उनकी पूजा की जाती है और अंत में उन्हें उपहार-स्वरुप नए वस्त्र भेंट किये जाते हैं |
नवरात्रि व्रत कथा
नवरात्रि व्रत कथा का महत्व
एक बार बृहस्पति जी ने ब्रह्माजी से पूछा – हे ब्राह्मण श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और त्यौहार क्यों मनाया जाता है? इस व्रत को करने से क्या फल मिलता है और इस व्रत को करने की उचित विधि क्या है ? को सबसे पहले किसने किया ? कृपा करके विस्तार से समझाइये |
बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! सृष्टि के समस्त प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है।
जो मनुष्य सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूरा करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, समस्त पापों से छुटकारा मिल जाता है और मन का मनोरथ सिद्ध हो जाता है।
नवरात्रि व्रत कथा
ब्रम्हाजी बृहस्पति जी से बोले-
प्राचीन काल में मनोहर नगर में पीठत नाम का एक अनाथ ब्राह्मण रहता था, वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके संपूर्ण सद्गुणों से युक्त सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने पिता के घर बाल्यकाल में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कला बढ़ती है।
उसका पिता प्रतिदिन जब दुर्गा की पूजा करके होम किया करता, वह उस समय नियम से वहां उपस्थित रहती। एक दिन सुमति अपनी सखियों के साथ खेल में लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और वह पुत्री से कहने लगा अरी दुष्ट पुत्री! आज तूने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ट रोगी या दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा।
पिता का ऐसा वचन सुन सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी- हे पिता! मैं आपकी कन्या हूं तथा सब तरह आपके आधीन हूं जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा से, कुष्टी से, दरिद्र से अथवा जिसके साथ चाहो मेरा विवाह कर दो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो अटल विश्वास है जो जैसा कर्म करता है उसको कर्मों के अनुसार वैसा ही फल प्राप्त होता है क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है पर फल देना ईश्वर के आधीन है।
जैसे अग्नि में पड़ने से तृणादि उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं। इस प्रकार कन्या के निर्भयता से कहे हुए वचन सुन उस ब्राह्मण ने क्रोधित हो अपनी कन्या का विवाह एक कुष्टी के साथ कर दिया और अत्यन्त क्रोधित हो पुत्री से कहने लगा-हे पुत्री! अपने कर्म का फल भोगो, देखें भाग्य के भरोसे रहकर क्या करती हो?
पिता के ऐसे कटु वचनों को सुन सुमति मन में विचार करने लगी- अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह कन्या अपने पति के साथ वन में चली गई और डरावने कुशायुक्त उस निर्जन वन में उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।
उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देख देवी भगवती ने पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रगट हो सुमति से कहा- हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुझसे प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो सो वरदान मांग सकती हो। भगवती दुर्गा का यह वचन सुन ब्राह्मणी ने कहा- आप कौन हैं वह सब मुझसे कहो? ब्राह्मणी का ऐसा वचन सुन देवी ने कहा कि मैं आदि शक्ति भगवती हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या व सरस्वती हूं। प्रसन्न होने पर मैं प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। तुम्हारे पूर्व जन्म का वृतांत सुनाती हूं सुनो!
तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की। चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तुझको और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया इस प्रकार नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ, इस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर मैं तुझे मनोवांछित वर देती हूं, तुम्हारी जो इच्छा हो सो मांगो।
इस प्रकार दुर्गा के वचन सुन ब्राह्मणी बोली अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे। मैं आपको प्रणाम करती हूं | कृपा करके मेरे पति का कोढ़ दूर करो। देवी ने कहा- उन दिनों तुमने जो व्रत किया था उस व्रत का एक दिन का पुण्य पति का कोढ़ दूर करने के लिए अर्पण करो, उस पुण्य के प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से मुक्त हो जाएगा।
ब्रह्मा जी बोले- इस प्रकार देवी के वचन सुन वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से जब उसने तथास्तु कहा, तब उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ट रोग से रहित हो अति कान्तिवान हो गया। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देख देवी की स्तुति करने लगी- हे दुर्गे! आप दुर्गति को दूर करने वाली, तीनों लोकों का सन्ताप हरने वाली, समस्त दु:खों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न हो मनोवांछित वर देने वाली और दुष्टों का नाश करने वाली जगत की माता हो। हे अम्बे! मुझ निरपराध अबला को मेरे पिता ने कुष्टी मनुष्य के साथ विवाह कर घर से निकाल दिया। पिता से तिरस्कृत निर्जन वन में विचर रही हूं, आपने मेरा इस विपदा से उद्धार किया है, हे देवी। आपको प्रणाम करती हूं। मेरी रक्षा करो।
ब्रह्मा जी बोले- हे बृहस्पते! उस ब्राह्मणी की ऐसी स्तुति सुन देवी बहुत प्रसन्न हुई और ब्राह्मणी से कहा- हे ब्राह्मणी! तेरे उदालय नामक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीध्र उत्पन्न होगा। ऐसा वर प्रदान कर देवी ने ब्राह्मणी से फिर कहा कि हे ब्राह्मणी! और जो कुछ तेरी इच्छा हो वह मांग ले। भगवती दुर्गा का ऐसा वचन सुन सुमति ने कहा कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्र व्रत की विधि और उसके फल का विस्तार से वर्णन करें।
इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुन दुर्गा ने कहा- हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हें संपूर्ण पापों को दूर करने वाले नवरात्र व्रत की विधि बतलाती हूं जिसको सुनने से मोक्ष की प्राप्ति होती है-
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधिपूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सकें तो एक समय भोजन करें।
विद्वान ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापन करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवी की मूर्तियां स्थापित कर उनकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधिपूर्वक अर्घ्य दें।
बिजौरा के फल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से अर्घ्य देने से कीर्ति, दाख से अर्घ्य देने से कार्य की सिद्धि होती है, आंवले से अर्घ्य देने से सुख की प्राप्ति और केले से अर्घ्य देने से आभूषणों की प्राप्ति होती है। इस प्रकार पुष्पों व फलों से अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होने पर नवें दिन यथा विधि हवन करें।
खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिल्व (बेल), नारियल, दाख और कदम्ब आदि से हवन करें। गेहूं से होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, खीर एवं चम्पा के पुष्पों से धन की और बेल पत्तों से तेज व सुख की प्राप्ति होती है। आंवले से कीर्ति की और केले से पुत्र की, कमल से राज सम्मान की और दाखों से संपदा की प्राप्ति होती है। खांड, घी, नारियल, शहद, जौ और तिल तथा फलों से होम करने से मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है।
व्रत करने वाला मनुष्य इस विधि विधान से होम कर आचार्य को अत्यन्त नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस प्रकार बताई हुई विधि के अनुसार जो व्यक्ति व्रत करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध होते हैं, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्र व्रत करने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
Navratri ki Aarti ( दुर्गा आरती, जय अम्बे गौरी)
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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FAQs
नवरात्रि कब है ? when is navratri ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र नवरात्रि 2023 की प्रतिपदा तिथि 22 मार्च है |
पहला नवरात्रि 2023 किस तारीख को है?
चैत्र नवरात्रि का आरम्भ 22 मार्च , बुधवार से होगा | महागौरी पूजा, जो नवरात्रि या दुर्गा अष्टमी के आठवें दिन होती है, 29 मार्च को है | राम नवमी 30 मार्च तथा दशमी 31 मार्च को है |
नवरात्रि साल में कितनी बार आते हैं?
नवरात्रि पर्व ऋतुओं के बदलाव के समय मनाया जाने वाला पर्व है और ये एक वर्ष में 4 बार आता है | चैत्र नवरात्रि और शरद नवरात्रि के अलावा एक वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्रि आती है | पहली माघ मास के शुक्ल पक्ष में और दूसरी आषाढ़ शुक्ल पक्ष में।
दुर्गा पूजा के 9 दिन कौन से हैं?
नवरात्रि (navratri)के दौरान माता दुर्गा (durga) के नौ रूपों की पूजा की जाती है: प्रतिपदा पर शैलपुत्री (shailputri mata), द्वितीया को ब्रह्मचारिणी (bramhacharini), तृतीया पर चंद्रघण्टा (maa chandraghanta), चतुर्थी पर कुष्मांडा (kushmanda devi), पंचमी पर स्कंद माता (skandmata) षष्ठी पर कात्यायनी (katyayni), सप्तमी पर कालरात्रि (kalratri), अष्टमी को महागौरी (mahagauri) और नवमी को सिद्धिदात्री (sidhhidatri)।
नवरात्रि के पहले दिन का महत्त्व क्या है |
नवरात्रि के पहले दिन को प्रतिपदा के नाम से जाना जाता है | इस दिन को माता पार्वती के अवतार शैलपुत्री (पर्वत की बेटी) से जोड़ कर देखा जाता है | इस रूप में है कि दुर्गा को हिमवान (हिमालय के संरक्षक भगवान) की बेटी के रूप में पूजा जाता है | शैलपुत्री को महाकाली का प्रत्यक्ष अवतार माना जाता है । इस दिन का रंग पीला है , जो क्रिया और शक्ति का प्रतीक है।
नवरात्रि के दूसरे दिन का महत्त्व क्या है |
नवरात्रि का दूसरा दिन माँ पार्वती के एक और अवतार देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है | इस रूप में माँ पार्वती ने योगिनी का रूप धारण कर लिया था | ब्रह्मचारिणी की पूजा का मुख्या उद्देश्य मोक्ष, शांति और समृद्धि की प्राप्ति है। इस दिन का रंग हरा है |
नवरात्रि के तीसरे दिन का महत्त्व क्या है |
नवरात्री के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है | माता पार्वती का यह अवतार सुंदरता का प्रतीक है | इस दिन का रंग ग्रे है |
नवरात्रि के चौथे दिन का महत्त्व क्या है |
चौथे दिन पर देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है | देवी कुष्मांडा को ब्रम्हांड की रचनात्मक शक्ति के रूप में जाना जाता है | इनका सम्बन्ध वनस्पति के बंदोबस्त से माना गया है | इसी वजह से इस दिन का रंग नारंगी है | इन्हे 8 भुजाओं सहित एक बाघ पर बैठे हुए दर्शाया गया है |
नवरात्रि के पांचवे दिन का महत्त्व क्या है |
माँ पार्वती चूंकि कार्तिकेय (स्कन्द) की माता हैं इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है | नवरात्री का पांचवा दिन इन्ही के लिए समर्पित है | इनकी चार भुजाएं हैं , हाथ में बच्चा है और इन्हे एक क्रूर शेर की सवारी करते हुए दर्शाया गया है | इस दिन का रंग सफ़ेद है |
नवरात्रि के छठे दिन का महत्त्व क्या है |
ऋषि कात्यायन की पुत्री के रूप में देवी कात्यायनी को जाना जाता है | ये माता दुर्गा का अवतार हैं | देवी कात्यायनी को योद्धा के रूप में जाना जाता है तथा देवियों में सबसे हिंसक रूप इन्ही का है | देवी कात्यायनी माँ पार्वती , महालक्ष्मी और महासरस्वती का एक रूप हैं | इनके 4 हाथ हैं और इन्हे सिंह की सवारी करते हुए दर्शाया गया है | नवरात्रि की षष्ट्मी (छठे दिन) को इनकी पूजा की जाती है |
नवरात्रि के सातवें दिन का महत्त्व क्या है |
देवी दुर्गा के सबसे उग्र रूप देवी कालरात्रि की पूजा नवरात्री के सातवें दिन पर की जाती है | ऐसा मान्यता है कि देवी पार्वती ने राक्षसों (शुंभ और निशुंभ) को मारने के लिए अपनी पीली त्वचा को हटा दिया था । इस दिन का रंग रॉयल ब्लू है |
नवरात्रि के आठवें दिन का महत्त्व क्या है |
नवरात्रि का आंठवा दिन देवी महागौरी को समर्पित है | देवी महागौरी बुद्धि और शांति का प्रतीक हैं। इस दिन को चंडी के महिषासुर मर्दिनी रूपा के जन्म दिवस के रूप में भी माना जाता है । इस दिन का रंग गुलाबी है |
नवरात्रि के नौवें दिन का महत्त्व क्या है |
नवरात्रि पर्व के अंतिम दिन नवमी को देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है | सिद्धिदात्री भगवान शिव की पत्नी पार्वती हैं । ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव के शरीर का एक भाग देवी सिद्धिदात्री का है। इसलिए इन्हें अर्धनारीश्वर के नाम से भी जाना जाता है । उन्हें महालक्ष्मी के रूप में भी जाना जाता है | ऐसी मान्यता है कि वह कमल पर बैठी हैं और सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं। यहां उनको चार हाथों के साथ दर्शाया गया है | वैदिक शास्त्रों के अनुसार भगवान शिव ने इस देवी की आराधना कर सभी सिद्धियों को प्राप्त किया था।
नवरात्रि में क्या दान करना चाहिए?
ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में जगत जननी माँ जगदम्बा देव लोक से पृथ्वी लोक पर आकर वास करती हैं | ऐसे समय में ऐसी कन्यायों , जिन्होंने अभी यौवनावस्था को प्राप्त न किया हो , को वस्त्र, लाल चूड़ियां , किताबें तथा फल भेंट स्वरुप देना बहुत शुभकारी मन गया है |
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